चोटी की पकड़–79

आगंतुक ने कहा, "आप हमारे आदमी हैं। इन्होंने आपको फँसा दिया है। हम आपको बचा लेंगे। 


कुछ रुपए भी देंगे। बाद को काम निकलने पर और मदद करेंगे। अभी आप एक चिट्ठी लिख दीजिए कि आपका यह नाम है, 

यह वल्दियत, इतने मामू हैं, और इसके इतने लड़के-यह-यह।"

नजीर ने, बात पक्की है, सोचा। गरीब थे। रुपए मिल रहे थे। दावात-कलम लेकर कुल बातें सामने लिख दीं।

आगंतुक ने उन्हें पच्चीस रुपए दिए । नजीर हर तरह से उसके आदमी बन गए। यूसुफ का पूरा-पूरा हाल आगंतुक को मालूम हो गया-वह कहाँ रहते हैं, उनके वालिद क्या करते हैं, आजकल क्या रुख है, किस कार्रवाई में लगे हैं।

आगंतुक वहाँ से राजा की कोठी आया। उसके साथी भी आए। उन्होंने घर का पता और बाप का नाम मालूम कर लिया था। 

सामने के पानवाले ने बतलाया था, दोनों जगहों की बातें मिल गईं। लोग खुशी-खुशी टहलते रहे। अली को देखा। अली ने पूछताछ शुरू की। लोगों ने कहा, "बर्दवान से आए हैं।"

अली ने पूछा, "बर्दवान में सुदेशो का आंदोलन कैसा है?"

"कौन सुदेशी?" एक ने पूछा।

"यही जो सरकार के खिलाफ बमबाजी हो रही है।"

"आप अखबार तो पढ़ते होंगे?"

"हाँ, हमने कहा..."

दूसरे ने कहा, "बमवाले हैं।"

"कौन?" अली ने कहा, "हमारे साहबजादे थानेदार हैं।"

तीसरे ने कहा, "हमारे मामू के साले के ससुर इंस्पेक्टर हैं।"

बाईस

प्रभाकर को जहाँ रखा है, उसी कोठी का पिछला हिस्सा है। दूसरी तरफ बुआ रहती थीं। प्रभाकर के दोमंजिले की छत, दूसरे छोर तक, बरगद और पीपल की डालों से छायादार है। 

भीतर, कोठों में, अँधेरा। इतना प्रकाश कि काम कुल हों। खुली तरफ खिड़कीवाला बाग। दूसरे किनारे मर्दों के लिए बड़ा जलाशय, गहरा, मछलियों की खान। 

किनारे नारियलों की कतार। दूसरी पर, आम, जामुन, कटहल, लीची, नारंगी, शहतूत, फ़ालसा, बादाम, रक्तचंदन आदि के पेड़। कहीं-कहीं गुलचीनी, गंधराज, अशोक, हींग,अनार, गुलाबजामुन, योजनगंधा।

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